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dhan ki ropai

धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

कोविड-19 के प्रभाव के चलते इस बार धान की रोपाई के लिए मजदूरों का संकट हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। धान की सीधी बिजाई इसका श्रेष्ठ समाधान है। 

धान की खेती सीधी बुवाई कम पानी वाले, जलभराव वाले एवं वर्षा आधारित खेती वाले सभी इलाकों में की जा सकती है। 

धान तिलहन है या दलहन

धान ना तो तिलहन है ना दलहन है। दलहनी फसल में होती है जिनमें से तेल निकलता है यानी सरसों अरंडी तिल अलसी आदि। 

दलहनी फसलें वह होती है जिनकी दाल बनाई जाती है यानी चना उर्दू मून मशहूर राजमा आदि। धान अनाज है खाद्यान्न है। 

क्या है सीधी बिजाई का तरीका

धान की सीधी बिजाई गेहूं जो जैसी फसलों की तरह ही की जाती है। बिजाई के लिए धाम को नर्सरी डालने की तरह ही 12 घंटे पानी में भिगोया जाता है उसके बाद जूट के बैग में अंकुरित होने के लिए रखा जाता है।

कार्बेंडाजिम 223 जैसे किसी फफूंदी नाशक से उपचारित किए हुए इस बीच को थोड़ा खुश्क करके बो दिया जाता।

क्या है सीधी बिजाई के फायदे

इस तकनीकी से धान की फसल लगाने से उत्पादन लागत में भारी कमी आती है। 50 से 60% तक डीजल की बचत होती है। 30 से 40 फ़ीसदी श्रमिकों पर होने वाले खर्चे में बचत होती है। 

उर्वरकों के उपयोग में भी इजाफा होता है। इस तरह धान की फसल लेने से जहरीली मीथेन गैस का उत्सर्जन भी बेहद कम हो जाता है जोकि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अहम है। 

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कब करें धान की बुवाई

धान की खेती बुवाई मानसून आने से 10 से 15 दिन पूर्व कर देनी चाहिए। इससे पूर्व खेत को तीन से चार बार एक एक हफ्ते के अंतराल पर गहरा जोतना चाहिए। 

जुताई के बीच में अंतराल इसलिए रखना चाहिए ताकि जमीन ठीक से सीख जाए और उसमें मौजूद हानिकारक फफूंदी नष्ट हो जाएं। खेतों को कभी एक ही बार में तीन से चार बार नहीं जोतना चाहिए। 

सीधी बिजाई के लिए धान की किस्में

धान की सीधी बिजाई के लिए पूसा संस्थान की सुगंध 5, 1121, पीएचवी 71, नरेंद्र 97, एमटीयू 1010, एच यू आर 3022, सियार धान 100 किस्म प्रमुख हैं। 

बीज दर

सीधी बिजाई के लिए मोटे धान की 20 से 25 किलोग्राम बीज एवं बारीक धान की 10 से 12 किलोग्राम बीज को अंकुरित करके बोया जा सकता है। 

उर्वरक प्रबंधन

धान की सीधी बिजाई के लिए आखरी जुताई की समय 50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं 25 किलोग्राम जिंक को आखरी जुताई में मिला देना चाहिए। 

जिंक और फास्फोरस को एक साथ नहीं मिलाना चाहिए अन्यथा फास्फोरस निष्प्रभावी हो जाता है। 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है इसकी एक तिहाई मात्रा जुताई में मिला दें बाकी फसल बढ़वार के लिए प्रयोग में लाएं। 

खरपतवार नियंत्रण

धान की सीधी बुवाई के बाद पेंडा मैथलीन दवा की एक किलोग्राम मात्रा को पर्याप्त पानी में घोलकर बुवाई के 24 घंटे के अंदर मिट्टी पर छिड़क देना चाहिए ताकि खरपतवार उगें ही नहीं। 

फसल बढ़वार के समय उगने वाले खरपतवार को मारने के लिए नॉमिनी गोल्ड दवा का छिड़काव करें।

धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

धान की खेती की रोपाई का आखिरी सीजन चल रहा है। जो किसान भाई अपने खेतों में धान के पौधों की रोपाई कर चुके हो वह यह न मान कर चलें कि खेती का काम समाप्त हो गया है। खेती के बारे में कहा जाता है कि खेती का काम कभी समाप्त ही नहीं होता है। एक फसल कटने के बाद दूसरे फसल की तैयारी शुरू हो जाती है। जो किसान भाई धान की फसल से अच्छी पैदावार चाहते हैं। यदि समय पर धान के पौधों की रोपाई कर ली हो तो उसके बाद की देखभाल करनी चाहिये। फसल की जितनी अधिक देखभाल करेंगे। समय पर खाद, पानी और निराई गुड़ाई करायेंगे, उतनी ही अच्छी पैदावार पायेंगे। ऐसे किसानों की धान की खेती से अन्य किसानों की अपेक्षा अधिक आमदनी हो सकती है। आइये हम जानते हैं कि रोपाई के बाद धान के खेत में किन-किन खास बातों का ख्याल रखना पड़ता है।

रोपाई के बाद रखें खरपतवार का ख्याल

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे पहले तो जुलाई के माह में हर हाल में धान की रोपाई हो जानी चाहिये। जिन किसान भाइयों ने धान के पौधे की रोपाई कर ली हो तो उनहें रोपाई के दो-तीन दिनों के भीतर खरपतवार को नियंत्रित करने वाली दवा डालनी चाहिये ताकि धान की फसल में अनचाही घास अपनी पकड़ न बना सके। इसके दो सप्ताह के बाद फिर खेत का अच्छी तरह से मुआयना करना चाहिये। उस समय भी खरपतवार को देखना होगा। यदि खरपतवार बढ़ रही हो तो उसका उपाय करना चाहिये। इसके अलावा खेत में यह भी देखना चाहिये कि जहां पर पौधे न उगे हों जगह खाली बच गयी हो अथवा पौधे खराब हो गये हों। उनकी जगह नये पौधे लगाने चाहिये। इस गैप को भरने से फसल भी बराबर हो जायेगी और पैदावार भी अच्छी होगी। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

पानी के प्रबंधन पर दें ध्यान

वर्षाकाल में धान की पौध को रोपने के बाद वर्षा का इंतजार करें और यदि वर्षा न हो तो सिंचाई का प्रबंधन करें। किसान भाइयों को रोपाई के बाद इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि एक सप्ताह तक खेत में दो इंच पानी भरा रहना चाहिय् इसके अलावा प्रत्येक सप्ताह खेत की निगरानी करते रहना चाहिये। खेत सूखता दिखे तो सिंचाई करना चाहिये। धान में फूल आते समय तथा दाने में दूध पड़ने के समय खेत में पर्याप्त नमी रखने का प्रबंध करना चाहिये। ऐसा न करने से पौधे सूख सकते हैं और उत्पादन प्रभावित हो सकती है। लेकिन कटाई से 15 दिन पहले से सिंचाई बंद करना चाहिये।

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उर्वरकों का प्रबंधन भी जरूरी

धान की खेती में अच्छी पैदावार के लिए समय पर सिंचाई के बाद  उचित समय पर खाद एवं उर्वरक का भी प्रबंधन किया जाना जरूरी होता है। धान की बुआई के समय गोबर की खाद के अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। लेकिन नाइट्रोजन का इस्तेमाल धान की रोपाई के बाद कई बार दिया जाता है। अलग-अलग किस्मों के लिए अलग-अलग तरह से उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है। 1.जल्दी पकने वाली किस्मों में बुआई से पहले प्रति एकड़ 24 किलो नाइट्रोजन, 24 किलो फॉस्फोरस और 24 किलो पोटाश को डालना चाहिये। रोपाई के बाद जब कल्ले निकलते दिखें उस समय किसान भाइयों को 24 किलो नाइट्रोजन को डालना चाहिये। इससे अच्छी पैदावार हो सकती है। 2.देर से पकने वाली फसलों के लिए प्रति एकड़ 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस और 25 किलो पोटाश बुआई के समय दिया जाना चाहिये तथा रोपाई करने के बाद जब कल्ले निकलते नजर आयेंं तो 30 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव खेतों में करना चाहिये। इससे दाने अच्छे बनते हैं। पैदावार भी अच्छी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=BS9nx-38oGo&[/embed] 3.सुगंधित चावल के धान की फसल देर से पकती है। इस तरह की फसल के लिए प्रति एकड़ 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फास्फोरस और 25 किलो पोटाश तो बुआई के समय डाली जानी चाहिये। इसके बाद जब कल्ले और बालियां निकलने वाले हों तो उस समय 50 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस और 12 किलो पोटाश डालनी चाहिये। इससे उत्तम क्वालिटी का धान पैदा होता है। साथ ही पैदावार बढ़ जाती है। 4.सीधी बुवाई वाली फसल में 50 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से बुआई के समय डाला जाना चाहिये। इसके अलावा 50 किलो नाइट्रोजन खरीद लें तो जिसके चार हिस्से कर लेना चाहिये। एक हिस्सा तो रोपाई के समय डालना चाहिये। इसका दो गुना हिस्सा कल्ले निकलते समय डालना चाहिये। इसके बाद बचा हुआ एक हिस्सा बालियां निकलते समय डालना चाहिये।

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कीट पर नजर रखें और उपाय करें

धान के पौधों की लगातार निगरानी करते रहना चाहिये क्योंंंंकि कल्ले निकलने से लेकर दाने में दूध पड़ने तक अनेक तरह के कीट एवं रोगों का हमला होता है। किसान भाइयों को चाहिये कि खेतों की निगरानी करते समय जिस कीट अथवा रोग की जानकारी मिले, उसका तुरन्त इंतजाम करना चाहिये।

सैनिक कीट

रोपाई के बाद सबसे पहले सैनिक कीट की सूंडियों के हमले का डर रहता है। यह कीट पौधों को इस प्रकार खा जाती है जैसे लगता है कि पशुओं के झुंड ने खेत को चर डाला हो। जब भी इस कीट के हमले का संकेत मिले।  उसी समय मिथाइल पैराथियान या फेन्थोएट का 2 प्रतिशत चूर्ण पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।

गंधीबग कीट

रोपाई के बाद खेतों में हमला करने वाले कीटों में गंधी बग कीट प्रमुख है। इस कीट के खेत में आक्रमण होते ही बहुत दुर्गन्ध आने लगती है। ये कीट पौधों में दूधिया अवस्था में लगता है। यह कीट दूध चूस कर दानों को खोखला कर देता है। इससे धान पर काले धब्बे बन जाते हैं और उसमें चावल नही बनते। इस कीट के आक्रमण का संकेत मिलने पर मैलाथियान धूल 5 डी 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। इसके अलावा किसान भाई क्विनालफॉस 25 ईसी दो मिली प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा एसीफेट 75 एस पी डेढ़ ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  कार्बारिल या मिथाइल पैराथियान धूल को 25-30 किलोग्राम से पानी में मिलाकर छिड़काव करने से लाभ मिलता है।

तनाच्छेदक कीट

रोपाई से लगभग एक माह बाद तनाच्छेदक कीट लगने की संभावना रहती है। यह कीट फूल व बालियों को नुकसान पहुंचाता है। इसका पता लगते ही ट्राइकोकार्ड (ततैया) एक से डेढ़ लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 6 सप्ताह तक छोड़ें। इसके अलावा कार्बोफ्रयूरॉन 3 जी या कारटैप हाइड्रोक्लोराइज 4 जी या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। क्विनॉल, क्लोरोपायरीफास का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

हरा फुदका

हरे फुदका भी ऐसा कीट होता है जो पौधों के तने का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट की खास बात यह है कि यह पत्तों में नही लगता बल्कि तने में चिपका रहता है। काले, भूरे व सफेद रंग के ये फुदके फसल के लिए काफी खतरनाक होते हैं। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर या बुप्रोफेजिन 25 एस एस 1 मिली प्रति लीटर का प्रति प्रयोग करना चाहिये। इससे लाभ होगा। इसके अतिरिक्त  इमिडाक्लोरोप्रिंड 17.8 एसएस, थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यूपी, बीबीएमसी 50 ईसी का भी प्रयोग किसान भाई कर सकते हैं। यदि आपका खेत बस्ती के आसपास है तो आपको चूहों से भी सतर्क रहना होगा। चूहों के नियंत्रण के लिए आसपास के खेत वालों के साथ मिलकर उपाय करने होंगे पहले विषरहित खाद्य चूहों को देना चाहिये। एक सप्ताह बाद जिक फॉस्फाइड मिला खाद्यान्न देना चाहिये। इससे चूहे समाप्त हो सकते हैं। इसक अलावा कटाई, मड़ाई समय पर करनी चाहिये। मड़ाई के बाद अच्छी तरह सुखाने आदि का प्रबंधन भी किसान भाइयों को करना चाहिये।
धान की रोपाई

धान की रोपाई

दोस्तों आज हम बात करेंगे, धान की रोपाई की यदि आप एक किसान भाई हैं और आपको धान की रोपाई की पूरी जानकारी सही तरह से मालूम नहीं है, तो आप की फसल खराब हो सकती है। इसलिए आप धान की रोपाई की सभी प्रकार की आवश्यक बातें को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक बने रहें: 

धान की रोपाई करने का तरीका (Paddy transplanting method):

धान की रोपाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से दो से तीन बार गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। किसान भाई धान की रोपाई करने के लिए एक हफ्ते पहले ही खेत की अच्छी तरह से सिंचाई कर लेते हैं। रोपाई करने के लिए हैरो की आवश्यकता पड़ती है यह जुताई लगभग दो से तीन बार हैरो द्वारा की जाती है। जुताई करने के बाद खेत को अच्छी तरह से पानी से भर दिया जाता है। खेतों में पडलर और टिलर की सहायता से जुताई की जाती है। जताई करने के बाद खेतों में पाटा लगाकर मिट्टी को अच्छी तरह से समतल बना दिया जाता है।

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धान की रोपाई करते समय खाद का उपयोग:

धान की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। इस फसल से किसान को काफी मुनाफा होता है। धान की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आखिरी जुताई में किसान लगभग 100 से लेकर150 कुंटल पर हेक्टर गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल कर खेतों में डालते हैं। खाद डालने के साथ ही साथ लगभग उर्वरक 120 किलोग्राम वही नत्रजन 60 किलोग्राम तथा फास्फोरस 60 किलोग्राम पोटाश तत्वों का इस्तेमाल करते हैं। इन खादो का इस्तेमाल करने से धान की अच्छी फसल का उत्पादन होता है। 

धान की फसल में पहली खाद कब डालें:

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य प्रकाश की कमी हो जाने से फसलें काफी नाजुक और कमजोर हो जाती है।ऐसी स्थिति में आप को समय रहते ही यूरिया खाद का इस्तेमाल करना चाहिए।15 से 20 दिन के अंदर पौधों को सूर्य प्रकाश ना मिले तो यूरिया खाद का इस्तेमाल करें। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरीके को अपनाने से फसल खराब नहीं होने पाती और धान की फसल की अच्छी पैदावार होती है।

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धान की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खाद डालने के इस तरीके को अपनाना आवश्यक होता है। 

धान की रोपाई करने के बाद, खाद कितने दिनों में डाले :

किसानों के अनुसार धान की रोपाई करने के बाद यदि ऐसा लगता है। कि धान की फसल में खाद डालने की आवश्यकता है की नही तभी फसलों में खाद डालें। धान की रोपाई में लगभग 35 दिनों के बाद खाद डालते हैं। परंतु बिना कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अनुसार धान की फसल में खाद ना डालें।

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धान की फसल में नमक का इस्तेमाल:

धान खरीफ की सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है। अल्पवर्षा के मौसम में लगभग 15 दिनों के लिए फसलों को सुरक्षित रखने के लिए नमक का छिड़काव करना उपयोगी होता है। नमक के छिड़काव से फसल बारिश से पूरी तरह सुरक्षित रहती है। नमक छिड़काव से भूमि में नमी बनी रहती है। इस प्रक्रिया को अपनाने से भूमि की उर्वरक क्षमता में भी कोई कठिनाई या फर्क नहीं पड़ता है। इसीलिए नमक का छिड़काव करना धान की फसल के लिए उपयोगी होता है। 

धान की फसल में कीटनाशक का उपयोग:

कभी-कभी ऐसा होता है, कि धान की फसल में फुदका रोग लगने की संभावना बन जाती है। यह स्थिति फसलों में पानी भर जाने के कारण पनपती है। मान लीजिए अगर फसलों में फुदका रोग लग गया हो तो, फसलों की सुरक्षा करने के लिए कीटनाशक क्लोरोपाइरीफास Chlopyrriphos कि लगभग 1 मिलीलीटर मात्रा को पूरे खेतों में अच्छी तरह से छिड़काव कर दे। 

धान की प्रमुख किस्में:

धान की प्रमुख किस्में कुछ इस प्रकार है: धान की किस्में सिंचित दशा, जो सिंचित क्षेत्रों मे जल्दी पकने वाली किस्में कही जाती है। धान की दूसरी किस्म पूसा जो लगभग 169 दिनों में पक जाती है। धान की कुछ लोकप्रिय किस्म पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1728, कावेरी 468, पूसा बासमती 1692, पूसा PB1886, पूसा-1509 आदि है। धान की नरेंद्र किस्म जो 80 दिनों का समय लेती है। पंत धान 12 तथा मालवीय धान-3022, उसके बाद नरेन्द्र धान-2065, धीमी पकने वाली पंत धान 10, पंत धान-4, और सरजू-52, नरेन्द्र-359, नरेन्द्र-2064, नरेन्द्र धान-2064, पूसा-44, पीएनआर लगभग प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार 381 प्रमुख किस्में मौजूद है।

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धान की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान दे:

  • कुछ परिस्थितियां में जैसे, क्षेत्रीय जलवायु तथा मिट्टी का चयन, सिंचाई का साधन होना, जलभराव की समस्या, बुवाई कैसे करें, रोपाई की व्यवस्था आदि समस्याओं से बचने के लिए पहले ही प्रबंध बनाएं। धान की रोपाई करते समय हमेशा अच्छी बीज प्रजाति का चयन करें।
  • हमेशा धान की रोपाई करते समय शुद्ध प्रमाणित एवं शोधित बीज ही बोयें। ताकि फसल खेतों में पूरी तरह से उत्पादन हो सके।
  • खेतों में खाद डालते समय अच्छी तरह से मृदा परीक्षण हो जाने के बाद ही संतुलित उर्वरकों को हरी खाद एवं जैविक खाद में मिलाकर खेतों में रोपण करें। खाद की उचित मात्रा तथा समय पर खादो को खेतों में डालना उपयोगी होता है।
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  • सही समय पर बुवाई तथा सिंचाई करना आवश्यक होता है।
  • धान के पौधों की संख्या सुनिश्चित इकाइयों पर को जानी चाहिए।
  • कीट रोग एवं खरपतवार नियंत्रण बनाए रखने के लिए समय-समय पर कृषि विशेषज्ञों के अनुसार रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते रहना चाहिए। जिस से पूर्ण रुप से फसलों की सुरक्षा हो सके।
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शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का इस्तेमाल:

यदि आप शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का इस्तेमाल करते हैं तो धान की उत्पाद क्षमता अधिक हो जाती है। कृषक इन उन्नत बीजों का इस्तेमाल अपने अगले उत्पाद के लिए भी कर सकते हैं। तथा तीसरे प्रमाणित बीज लेकर बुवाई कर सकते हैं। इस प्रकार शुद्ध एवं प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करना उपयोगी होता है।

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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं हमारा यह आर्टिकल धान की रोपाई आपको पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में धान की रोपाई से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातें मजबूत हैं। जो आपके काम बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

नई दिल्ली। कहावत है ''बिन पानी सब सून''। वाकई बिना पानी के सब कुछ शून्य है। बारिश बिना खरीफ के आठ फसलों का पूरा खेल बिगड़ता दिखाई दे रहा है। हल्के मानसून के चलते खरीफ की फसलों की बुवाई पिछड़ती जा रही है।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी पिछले साल के मुकाबले, इस बार खरीफ की फसलों की बुवाई में ९.२७ फीसदी गिरावट हुई है। बुवाई का यह आंकड़ा ४१.५७ हेक्टेयर तक पीछे जा रहा है। साल २०२१ में ४४८.२३ लाख हेक्टेयर जमीन में खरीफ की फसलें बोई गईं थीं, लेकिन इस साल आठ जुलाई तक सिर्फ ४०६.६६ लाख हेक्टेयर फसल बोई गईं हैं। कम बारिश के चलते धान और तिलहन की फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहीं हैं। महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में कमजोर बारिश के कारण खेती लगातार पिछड़ती जा रही है।

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पंपसेट लगाकर महंगा डीजल फूंककर धान की रोपाई कर रहे किसान

कमजोर मानसून की मार झेल रहे किसान पंपसेट लगाकर धान की रोपाई कर रहे हैं। समय पर धान की रोपाई हो जाए, इसके लिए महंगा डीजल भी फूंक रहे हैं। इससे फसल की लागत बढ़ रही है, जो भविष्य में घाटे का सौदा बन सकती है।

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धान रोपाई की क्या स्थिति है ?

चालू खरीफ सीजन २०२२ में ८ जुलाई तक ७२.२४ लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई और बुवाई हो चुकी है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक यह ९५ लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मतलब इसमें करीब २३.९५ फीसदी की कमी है, जो २२.७५ लाख हेक्टेयर की कमी को दर्शाता है। धान सबसे ज्यादा पानी खपत वाली फसलों में से एक है। इसलिए इसकी रोपाई के लिए किसान आमतौर पर बारिश का ही इंतजार करते हैं।

बुवाई में दलहन आगे तो तिलहन की फसल हैं पीछे

पिछले साल के मुकाबले बात करें तो दलहन की फसलों की बुवाई में ०.९८ फीसदी का इजाफा है। साल २०२१ में कुल दलहन फसलों की ४६.१० लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जबकि इस बार ४६.५५ लाख हेक्टेयर की हो चुकी है। हालांकि, अरहर की बुवाई में २८.५८ परसेंट की गिरावट है। पिछले साल मतलब २०२१ में २३.२२ लाख हेक्टेयर में अरहर की बुवाई हुई थी। जबकि इस बार १६.५८ लाख हेक्टेयर में ही हो सकी है। उड़द की बुवाई में १०.३४ फीसदी की कमी है।

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उधर तिलहन की फसलों की बुवाई में लगभग २०.२६ फीसदी की गिरावट है। साल २०२१ में ८ जुलाई तक ९७.५६ लाख हेक्टेयर में मूंगफली, सूरजमुखी, नाइजर सीड सोयाबीन और अन्य तिलहन फसलों की बुवाई हो चुकी थी। जबकि इस साल सिर्फ ७७.८० लाख हेक्टेयर में हुई है। सोयाबीन की बुवाई में २१.७४ फीसदी की कमी है। क्योंकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बारिश में देरी हुई है। इसकी बुवाई के लिए खेत में नमी की जरूरत होती है।

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२०२२ में बाजरा की बुवाई की स्थिति?

बात करते हैं साल २०२२ में बाजरे के बुवाई की। बाजरा की बुवाई पिछले साल से अधिक हो चुकी है। इस साल ६५.३१ लाख हेक्टेयर में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का और स्माल मिलेट्स की बुवाई हुई है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक सिर्फ ६४.३६ लाख हेक्टेयर में हुई थी। बाजरा की बुवाई पिछले साल के मुकाबले इस बार ७९.२६ फीसदी अधिक है. हालांकि, मक्का की बुवाई २३.५३ फीसदी जबकि रागी की ४७.४४ परसेंट पिछड़ी हुई है। ------- लोकेन्द्र नरवार